Sunday, December 4, 2011

'स्वामी विवेकानंद' के अनुसार " हम ऐसी शिक्षा चाहते हैं जो चरित्र निर्माण कर सके , दिमागी ताकत को बढा सके, वैचारिक सकती को विस्तार दे सके और कोई भी अपने पैरों पर खड़ा हो सके | " 
                      पर शायद आज की युवा पीढ़ी इससे इत्तेफाक नहीं रखती तभी तो उसके लिए शिक्षा के मायने बदल गए हैं | पढ़कर डिग्री लेना उनकी फितरत नहीं वो तो बस हंगामा खड़ा कर , कॉलेज और विश्वविद्यालय को ठ़प कर जबरन अपना रिजल्ट पाना चाहते हैं | बि० आर० ए० बिहार विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर में छात्र संगठनों की आड़ में कुछ लोग अपने मतलब की रोटी सकते हैं और छात्रों को गुमराह करते हैं | उनके कृत्यों से समूचे शिक्षा जगत को शर्मसार होना पड़ता है | आये दिन गुरु-शिष्य परंपरा के अटूट और पवित्र रिश्ते को धता बताते हुए उनके साथ बदसलूकी और छात्रों के साथ रैगिंग की घटना तो जैसे आम बात हो चली है | 
                            एक वक्त था जब लंगट सिंह कॉलेज बिहार का गौरव हुआ करता था जहा से हर साल आई० ए ०एस० और आई० पी० एस० कि फ़ौज निकलती थी परन्तु आज कि स्थिति वैसी नहीं रही | आज भी यह बिहार नहीं वरन पूरे देश के लिए गौरव का प्रतीक है जहाँ देश के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न राजेंद्र प्रसाद, आचार्य जे० बी ० कृपलानी एवं मलकानी तथा राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जैसे शिक्षक अपनी सेवाएं दे चुके हैं परन्तु वक़्त बीतने के साथ शिक्षा का ध्येय बदल गया है , अब तो इन महान विभूतियों के आदर्श शायद युवा वर्ग को ना तो प्रेरित करते हैं और ना ही कोई उनके पदचिन्हों पर चलने कि बात करता है जो सचमुच हमारी संस्कृति के खिलाफ है | 
                            ये सच है कि छात्र शक्ति में बड़ी ताकत होती है जो किसी भी सत्ता को उखाड़ फेकने का माद्दा रखती है, जे० पी० आन्दोलन इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है जिसके फलस्वरूप  बिहार में तब के समय में कई छात्र नेता उभर कर सामने आये जिनमे बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार , लालू प्रसाद यादव , शरद यादव और रामविलास पासवान का नाम लिया जा सकता है जो ना सिर्फ राजनीति के क्षितिज पर छा गए बल्कि अपना अलग एक मुकाम हासिल किया | परन्तु आज का युवा वर्ग लक्ष्य से भटक गया सा लगता है जो किसी छात्र हित कि बात नहीं करता अपितु सस्ती लोकप्रियता पाने कि ललक में युवा वर्ग किसी भी हद तक चला जाता है | अखबारों में अपनी तस्वीर छपवाने के लिए वो कॉलेज और विश्वविद्यालय में बंद का आह्वान कर तोर -फोड़ करता है जो कि निन्दनिये है | शायद उसे इस बात का इल्म नहीं कि इस वजह से हजारों छात्रों का नुक्सान ही होता है फायदा कुछ नहीं |
                            यहाँ तक कि कुछ छुटभैये नेता छात्रो के हित कि बात करते दिखाई तो नहीं देते उलटे समय-समय पर उनकी जेबे जरुर ढीली करते हैं, नामांकन से लेकर डीग्री निकालने तक के नाम पर उनसे पैसा ऐंठते हैं | दूर - दराज से आने वाले छात्र विश्वविद्यालय का चक्कर लगाने के बजाय तथाकथित नेताओं को कमीशन देकर काम करवाना ज्यादा मुनासिब समझते हैं | क्या इन छात्र नेताओं में से फिर कोई जे ० पी ० निकलेगा ? क्या छात्र इन सबके खिलाफ कभी गोलबंद हो पाएंगे ? आखिर कब तक ? 
                             ऐसे ना जाने कितने ही सवाल हमारे दिल और दिमाग को झकझोरते हैं जिनका उत्तर ढूंढते - ढूंढते शायद हम पुनः उसी जगह पर आकर ठिठक जाते हैं और सोचते हैं कि आखिर कौन आगे आने कि जहमत उठाएगा ? 



सत्य  प्रकाश 
हिंदी पत्रकारिता और जनसंचार विभाग ,
बि० आर० ए० बिहार विश्वविद्यालय ,
मुजफ्फरपुर | 842001

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