Tuesday, December 27, 2011

सीबीआई की स्वतंत्रता


सीबीआई की स्थापना १९६८ में  इस उद्देश्य से नहीं की गयी थी की यह सरकार के हाथों की कठपुतली मात्र बनकर रहे बल्कि इस उद्देश्य से की गयी थी की यह भ्रष्टाचारमुक्त और अपराधमुक्त भारत के निर्माण में एक प्रभावकारी हथियार सिद्ध हो . उस समय  भारत सरकार ने " दिल्ली विशेष पुलिस निर्माण एक्ट " पास किया था और इस एक्ट के जरिये जो पुलिस बनी थी उसका अधिकार क्षेत्र मुख्यतः केन्द्रशासित प्रदेशों में ही था लेकिन दूसरे राज्यों में भी किसी विशेष अपराध होने पर उक्त राज्य की सहमती से कार्य कर सकती थी . सीबीआई  को लोकपाल के दायरे में लाने और न लाने पर बहस जारी है पर इन सबके बीच केंद्र सरकार ने लोकपाल बिल लोकसभा में पारित करा लिया . भ्रष्टाचार और अपराध की जांच के लिए बनी सीबीआई सालों से इस कलंक को झेल रही है की वह भ्रष्टाचारियों , दागी राजनेताओं और अपराधियों को बचने मात्र की संस्था बनकर रह गयी है .

               कहने को तो सीबीआई एक स्वायत्त संस्था है परन्तु हकीकत इसके ठीक उलट है . विभिन्न मौकों पर सत्तारूढ़ दल के द्वारा इसका गलत इस्तेमाल होता रहा है आंकड़े इसकी गवाही देते हैं दिल्ली में ही सीबीआई के लगभग १,३८९ मामले न्यायालयों में लंबित हैं जिनमे से विशेष न्यायाधीशों की ६ अदालतों में ९२७ मामले लंबित हैं . इनमे से १७१ मामले आठ वर्षों से भी अधिक समय से चल रहे हैं. साल २००६ के आखिर तक ८,२९७ सीबीआई मामले जांच पूरी होने के बाद मुक़दमे का इंतज़ार कर रहे थे . २००५ में लंबित मुकदमो की संख्या ६,८९८ थी और पिछले १० सालो से ज्यादा समय से २,२७६ से अधिक मामले विभिन्न अदालतों में विचाराधीन हैं . इन आंकड़ो को देखने के बाद सीबीआई की अपराध के खात्मे के  प्रति उदासीनता साफ़ झलकती है .
                ऐसे कई उदाहरण हैं जब राजनीतिक फायदों के लिए सीबीआई का बेजा इस्तेमाल किया गया और अपने हितों को साधने के लिए उसे पंगु बना कर रखा गया ताकि सत्ता की बागडोर हाथों से न फिसल जाये . जगदीश टाइटलर , बोफोर्स घोटाला , गोधरा कांड , आदर्श सोसायटी , टुजी स्पेक्ट्रुम घोटाला जैसे  मामले इसके ज्वलंत उदाहरण हैं . सीबीआई सरकार के अन्दर है और सरकार के अन्दर होते हुए वो उसके खिलाफ  जांच नहीं कर सकती जबकि सरकार के लगभग सारे के सारे मंत्री और मुलाजिम भ्रष्टाचार में कही न कही लिप्त रहते है , ऐसे में सीबीआई से निष्पक्ष जांच की उम्मीद करना बेमानी होगी. यह भी एक कठोर सच्चाई है की कोई भी सरकार , वो चाहे किसी भी राजनीतिक दल की हो , स्वतंत्र जांच संस्था नहीं चाहती जो उसके कहे अनुसार चलने को तैयार नहीं हो .
              जहा तक सीबीआई की स्वायत्ता का सवाल है तो सीबीआई की स्वायत्ता तो है ही नहीं अभी उसे स्वायत्ता देनी बाकि है .  जरुरत इस बात की है की सीबीआई को स्वतंत्र रखा जाये,  न ही सरकार के अधीन और न लोकपाल में इसका विलय किया जाये ताकि सीबीआई फिर से अपनी खोयी प्रतिष्ठा हासिल कर सके . अब देखना ये है की क्या वर्तमान सरकार सीबीआई को स्वतंत्रता प्रदान करती है या उसे पंगु बनाकर रखती है .


सत्य प्रकाश 
हिंदी पत्रकारिता और जनसंचार विभाग,
बि० आर० ए० बिहार विश्वविद्यालय ,
मुजफ्फरपुर.
09931806532

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